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Tuesday, May 11, 2010
बेटू के लिए
8:25 AM
Sandip Naik
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नज़्म उलझी हुई है सीने में, मिसरे अटके हुए है होठो पर,
लफ्ज कागज पर बैठते ही नहीं, उड़ते फिरते है तितलियों की तरह
कब से बैठा हूँ मैं जानम, सादे कागज पर लिखकर नाम तेरा,
बस तेरा नाम ही मुकम्मल है, इससे बेहतर भी नज्म क्या होगी ??
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