यूँही ही हमेशा जुल्म से उलझती रही है खल्क( जनता) न उनकी रस्म नयी है न अपनी रीत नयी यूँही हमेशा खिलाये है हमने आग में फूलन उनकी हार नयी है न अपनी जीत नयी फैज़ अहमद फैज़
यूँही ही हमेशा जुल्म से उलझती रही है खल्क( जनता) न उनकी रस्म नयी है न अपनी रीत नयी यूँही हमेशा खिलाये है हमने आग में फूलन उनकी हार नयी है न अपनी जीत नयी फैज़ अहमद फैज़
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