Friday, May 7, 2010

उम्र जलवों में बसर हो ये जरूरी तो नहीं/ हर शब गम की सहर हो ये जरूरी तो नहीं/ नींद तो दर्द के बिस्तर पे भी आ सकती है/ उनकी आगोश में सर हो ये जरूरी तो नहीं/ आग को खेल पतंगों ने समझ रख्खा है/ सबको अंजाम का डर हो ये जरूरी तो नहीं/ सबकी साकी पे नजर हो ये जरूरी है मगर/ सबपे साकी की नजर हो ये जरूरी तो नहीं/ शेख करता है जो मस्जिद में खुदा को सजदे/ उसके सजदों में असर हो ये जरूरी तो नहीं/

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