Monday, June 21, 2010

इस उड़ान पर अब शर्निन्दा, मैं भी हूँ और तू भी है /आसमान से कटा परिंदा, मैं भी हूँ और तू भी है / छूट गयी रस्ते में जीने मरने की सारी रस्में/ अपने अपने हाल पे जिन्दा मैं भी हूँ और तू भी...

Friday, June 18, 2010

नए ज़माने की कजरी

इन दीदाहवाई घटाओं की कोई दरोगा रबड़ी क्यूँ नहीं घोंट देता? दिल निचोड़े देती हैं.हमारे सब यारों को रोजगार ने इधर उधर कर दिया जानो तकिये की रुई बखेर दी. वरुन हीरो बनने दुबैया उड़ गए और निखिल ने रेडियो पे गाने बजाने की लिए पुने की बस पकड़ी. दीपक मुनिराजू जंगली हिमाले पर जाने को सामान बांधे बैठे हैं. जर्मनी को शशांक का हवाई जहाज़ एक टांग पर खड़ा हैं. साँची की रवानगी दिल्ली की और हैं, इस दिल्ली पर बजर गिरें.ब्रिंदा रूठ गयी और बनारसी बाबू आरम्भ मुंह चढ़ाये चढ़ाये फिरते हैं. दीपक गर्ग अपने आईवरी टावर की किवारियां ओंट खुदा जाने कौन सी खिचड़ी पकाने में मशगूल हैं. रुचिरा ने ध्यान लगा कर जोगनियाँ का भेष ले लिया और बंगाली मोशाय अभिसेक हेरोइन ढूँढने को मारे मारे भटकते हैं.हाय! हमारी तो महफ़िल ही उजड़ गयी.अब किसके मुंह लगे और किससे तमाम रात बहस करें. किसके गले में बांह डाल कनबतियां करें और हँस हँस के लोट-पोट...

Monday, June 7, 2010

जग से नाता छूटल हो

कौन ठगवा नगरिया लूटल हो चंदन काठ के बनल खटोलाता पर दुलहिन सूतल होउठो सखी री माँग संवारोदुलहा मो से रूठल होआये जम राजा पलंग चढ़ि बैठानैनन अंसुवा टूटल होचार जाने मिल खाट उठाइनचहुँ दिसि धूं धूं उठल होकहत कबीर सुनो भाई साधोजग से नाता छूटल...

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