इन दीदाहवाई घटाओं की कोई दरोगा रबड़ी क्यूँ नहीं घोंट देता? दिल निचोड़े देती हैं.हमारे सब यारों को रोजगार ने इधर उधर कर दिया जानो तकिये की रुई बखेर दी. वरुन हीरो बनने दुबैया उड़ गए और निखिल ने रेडियो पे गाने बजाने की लिए पुने की बस पकड़ी. दीपक मुनिराजू जंगली हिमाले पर जाने को सामान बांधे बैठे हैं. जर्मनी को शशांक का हवाई जहाज़ एक टांग पर खड़ा हैं. साँची की रवानगी दिल्ली की और हैं, इस दिल्ली पर बजर गिरें.ब्रिंदा रूठ गयी और बनारसी बाबू आरम्भ मुंह चढ़ाये चढ़ाये फिरते हैं. दीपक गर्ग अपने आईवरी टावर की किवारियां ओंट खुदा जाने कौन सी खिचड़ी पकाने में मशगूल हैं. रुचिरा ने ध्यान लगा कर जोगनियाँ का भेष ले लिया और बंगाली मोशाय अभिसेक हेरोइन ढूँढने को मारे मारे भटकते हैं.हाय! हमारी तो महफ़िल ही उजड़ गयी.अब किसके मुंह लगे और किससे तमाम रात बहस करें. किसके गले में बांह डाल कनबतियां करें और हँस हँस के लोट-पोट...