Sunday, September 26, 2010
Tuesday, August 24, 2010
Friday, July 9, 2010
ज्वरग्रस्त कवि का प्रलाप
कुंए की मुंडेर पर विस्मृत
कांसे के कलश जैसा
मैं तप रहा हूँ, देवि
यह ज्वर जो किसी पंहसुल सा
पंसलियों में फँसा है.
स्फटिक के मनकों जैसी स्वेद बिन्दुओं से
भरी हैं पूरी देह.
आँखों में रक्त और भ्रूमध्य
क्रोध के त्रिशूल का चिन्ह.
दादे के ज़माने की रजाई के
सफ़ेद खोल जैसा पारदर्शी आकास.
नीचे कुंए में जल पर
किसी एकाकी कव्वे की
रात्रिकालीन उड़नसैर का बिम्ब
पड़ता हैं चन्द्रमा के ऊपर.
ठहरों थोड़ी देर और
बैठे रहो, जल में झांकती
अपनी श्याम मुखच्छवियाँ
और बात करों बंधुत्व से भरी
मेरा क्या हैं?
मैं तो मात्र ताप ही ताप हूँ.
पारे से नाप सकती हो मुझे
किन्तु तुम आम्रतरू की छांह
कठिन हैं नापना जिसकी
शीतलता, बस अनुभव ही अनुभव हैं.
तुम्हे तो होना था
अगस्त्य मुनि का कमण्डलु.
तुम्हे सुनकर यों लगता हैं
जैसे नहाकर आया हूँ होशंगाबाद की
नर्मदा में, ठेठ जेठ के अपरान्ह.
चलो ठीक हैं, तुम्हारे पाँव व्याकुल हैं.
जाओ,
तिमिर में लगी अपनी शय्या पर
जहाँ सिरहाने धरा हैं पानी से भरा लोटा.
मेरा क्या हैं, तुम्हारे शब्दों के सीताफल
सहेज लूँगा पकने को
गेहूं से भरी कोठी में.
देखो बातों में लगा लिया तुमने
और मैं भूल गया अपने ज्वरग्रस्त देह की धूजन
तुम जाओ,
उपनिषदों की पोथी का तकिया बनाकर
सो जाओं.
Monday, June 21, 2010
Friday, June 18, 2010
नए ज़माने की कजरी
हमारे सब यारों को रोजगार ने इधर उधर कर दिया जानो तकिये की रुई बखेर दी. वरुन हीरो बनने दुबैया उड़ गए और निखिल ने रेडियो पे गाने बजाने की लिए पुने की बस पकड़ी. दीपक मुनिराजू जंगली हिमाले पर जाने को सामान बांधे बैठे हैं. जर्मनी को शशांक का हवाई जहाज़ एक टांग पर खड़ा हैं. साँची की रवानगी दिल्ली की और हैं, इस दिल्ली पर बजर गिरें.
ब्रिंदा रूठ गयी और बनारसी बाबू आरम्भ मुंह चढ़ाये चढ़ाये फिरते हैं. दीपक गर्ग अपने आईवरी टावर की किवारियां ओंट खुदा जाने कौन सी खिचड़ी पकाने में मशगूल हैं. रुचिरा ने ध्यान लगा कर जोगनियाँ का भेष ले लिया और बंगाली मोशाय अभिसेक हेरोइन ढूँढने को मारे मारे भटकते हैं.
हाय! हमारी तो महफ़िल ही उजड़ गयी.
अब किसके मुंह लगे और किससे तमाम रात बहस करें. किसके गले में बांह डाल कनबतियां करें और हँस हँस के लोट-पोट हो. किसकी छाती पर मूंग दले और किस पर दिखाए तेवर.
निखिल के बिना अब कौन उठाये हमारे नखरे और सहे नाज़ुकमिजाजी. चाय के कप औंधे पड़े हैं और चौराहे से दौड़ दौड़ कर व्हिस्की लाने का कोई सबब नहीं. मुनिराजू की अब्सेंस में कौन कमबख्त गांजा पी पीकर कमरे को धुंवे से भरे और आरम्भ की रंग-बिरंगी चड्डियों की झंडियों के बगैर हमारा यह सूना कमरा कैसे गुलजार हो.
मस्खरियों और प्रेंक्स के ज़माने हवा हुए और उस पर उनकी यह अर्ज़ के मियाँ ज़रा सिनेमा के लिए लिखों, अब उन्हें यह कौन बतलाये के हाँ हमारी जिंदगी की सिनेमा एकाएक ब्लेक एंड व्ह्यइट हो गयी और आवाज़ फुर्र.
अब किसके लिए बम्बई आये? उसपर यह बरसात और मानसून का मनहूस ग्रे रंग, जी डूबा डूबा जाता हैं और आँखों की पुतलियाँ बिछोह की मारी खुद को ही देखने लगती हैं.
Monday, June 7, 2010
जग से नाता छूटल हो
Tuesday, May 25, 2010
An IDEA has Changed Many Lives
An IDEA has Changed Many Lives
This was another scholarship distribution day was in Eklera. The third year and the children who have got the scholarship are quite grown up now and it was really amazing to see the shy and cool children talking very boldly and confidently.
In
I along with
Durga Bhaiyya very kindly offered us delicious Lunch as usual, and after the Lunch we reached to the Primary School. Children along with parents were assembled in the room. We listened to the children especially Girls who were quite shy before three years but now vocal and full of zeal. I asked them and told them that the new Right to Education Bill ahs been passed by the Parliament and now up to class VIII the Govt will provide free and compulsory Education to all the children despite of class creed and culture, so in view of this we won’t be able to help much in terms of Cash Amount. Girls and two three young adolescents said please continue as this is the only source from where we are getting help and we could complete our education, the percentage they got was reasonably good. Some of them are expecting results from MP HSSC Board and hoping to get more then 60% in final exams. We talked to parents and they were also in opinion of to continue the cash support although they did understand that to help any one for more then three years is almost like a liability and IDEA should not take this role.
We also explored to start the other co curricular activities and a Library in the village. All the IDEA Sponsored Children were ready to take the responsibility of running the Library, on the other part the villagers promised to give one room for the purpose. We said that we are working here for a cause and want to see the village educationally advanced.
Mr Rupesh is a young enthusiastic teacher from Tikamgarh is appointed as Regular teacher in the school, he is computer trained and showed an interest to teach Computer to children, provided he gets a Lap Top, may be old one. We said we will see to it and in the mean time he can begin with the systems provided in the school under Head Start Scheme.
The village was in mood to go for Match, so we also stopped and came back with so many questions like implementation of RIGHT to EDUCATION BILL, Quaity Assurance in Education, Enrollment and Retention and Girl Child Education as the villagers were asking a specific
Sandip Naik
On Behalf of IDEA Team.